Durga Saptashati Paath | दुर्गा सप्तशती पाठ

दुर्गा सप्तशती पाठ हिंदू धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण और प्रभावशाली धार्मिक अनुष्ठान है। यह ग्रंथ देवी दुर्गा के तीन प्रमुख रूपों महाक्रूरी, महालक्ष्मी, और महासरस्वती की भक्ति और पूजा को समर्पित है। Durga saptashati paath में 700 श्लोकों है, जो देवी दुर्गा की महिमा, उनके विजय और शक्ति को वर्णित करते हैं। पाठ के दौरान भक्त देवी की शक्ति, उनके विभिन्न रूपों और उनके दिव्य गुणों का गुणगान करते हैं।

दुर्गा सप्तशती व्यक्ति को धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से समृद्ध बनाता है, और देवी दुर्गा की विशेष कृपा प्राप्त करने का एक सशक्त माध्यम है। हमने आपके लिए सम्पूर्ण सप्तशती पाठ को नीचे उपलब्ध कराया है। आप चाहे तो इसे दुर्गा सप्तशती PDF के रूप में भी प्राप्त कर सकते है।

Durga Saptashati Paath

नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नम:॥
नम: प्रकृत्यै भद्रायै नियता: प्रणता: स्म ताम्॥१॥

ॐ ऐं आत्मतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा,
ॐ ह्रीं विद्यातत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा,
ॐ क्लीं शिवतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा,
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सर्वतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा॥२॥

ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः॥ ॐ नमः परमात्मने, श्रीपुराणपुरुषोत्तमस्य श्रीविष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्याद्य श्रीब्रह्मणो, द्वितीयपरार्द्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे प्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे, आर्यावर्तान्तर्गतब्रह्मावर्तैकदेशे पुण्यप्रदेशे बौद्धावतारे वर्तमाने यथानामसंवत्सरे अमुकामने महामांगल्यप्रदे, मासानाम्‌ उत्तमे अमुकमासे अमुकपक्षे अमुकतिथौ अमुकवासरान्वितायाम्‌ अमुकनक्षत्रे अमुकराशिस्थिते सूर्ये, अमुकामुकराशिस्थितेषु चन्द्रभौमबुधगुरुशुक्रशनिषु सत्सु शुभे योगे शुभकरणे एवं गुणविशेषणविशिष्टायां शुभ, पुण्यतिथौ सकलशास्त्र श्रुति स्मृति पुराणोक्त फलप्राप्तिकामः अमुकगोत्रोत्पन्नः अमुक नाम अहं ममात्मनः, सपुत्रस्त्रीबान्धवस्य श्रीनवदुर्गानुग्रहतो ग्रहकृतराजकृतसर्व-विधपीडानिवृत्तिपूर्वकं नैरुज्यदीर्घायुः, पुष्टिधनधान्यसमृद्ध्‌यर्थं श्री नवदुर्गाप्रसादेन सर्वापन्निवृत्तिसर्वाभीष्टफलावाप्तिधर्मार्थ-, काममोक्षचतुर्विधपुरुषार्थसिद्धिद्वारा श्रीमहाकाली-महालक्ष्मीमहासरस्वतीदेवताप्रीत्यर्थं शापोद्धारपुरस्परं, कवचार्गलाकीलकपाठ- वेदतन्त्रोक्त रात्रिसूक्त पाठ देव्यथर्वशीर्ष पाठन्यास विधि सहित नवार्णजप, सप्तशतीन्यास- धन्यानसहितचरित्रसम्बन्धिविनियोगन्यासध्यानपूर्वकं च “मार्कण्डेय उवाच। सावर्णिः सूर्यतनयो यो, मनुः कथ्यतेऽष्टमः”॥ इत्याद्यारभ्य “सावर्णिर्भविता मनुः” इत्यन्तं दुर्गासप्तशतीपाठं तदन्ते, न्यासविधिसहितनवार्णमन्त्रजपं वेदतन्त्रोक्तदेवीसूक्तपाठं रहस्यत्रयपठनं शापोद्धारादिकं च करिष्यामि॥

देवी के आशीर्वाद से यह पाठ भक्तों को न केवल बाहरी कष्टों से बचाता है, बल्कि आंतरिक नकारात्मकताओं को भी दूर करता है। इसके साथ-साथ दुर्गा देवी मंत्रम, दुर्गा स्तुति लिरिक्स और दुर्गा जी के 32 नाम का पाठ भी कर सकते है।

दुर्गा सप्तशती पाठ करने की विधि

  • स्थान: एक पवित्र और शांत स्थान चुनें जहाँ आप बिना किसी विघ्न के पूजा कर सकें। यह स्थान स्वच्छ और शांति से भरा होना चाहिए।
  • शुद्धता: पाठ करने से पहले स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें। यह आपकी शुद्धता और भक्ति को दर्शाता है।
  • पूजा की तैयारी: पूजा स्थल पर एक साफ आसन बिछाएं। आसन पर देवी दुर्गा की मूर्ति या चित्र रखें। सुनिश्चित करें कि मूर्ति या चित्र साफ और पवित्र हो।
  • दीपक जलाएं: देवी के सामने घी या तेल का दीपक जलाएं और अगरबत्ती भी लगाएं। इससे पूजा स्थल पवित्र और दिव्य हो जाएगा।
  • फूल और प्रसाद : देवी को ताजे फूल, फल, मिठाई या अन्य प्रसाद अर्पित करें। यह आपकी श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है।
  • सप्तशती पाठ: दुर्गा सप्तशती के 700 श्लोकों का पाठ करें। यह नियमित रूप से, शांत और सही उच्चारण के साथ किया जाना चाहिए।
  • ध्यान: पाठ के दौरान और अंत में ध्यान लगाएं और देवी दुर्गा की महिमा और गुणों पर मनन करें। इससे आपकी भक्ति और विश्वास मजबूत होगा।
  • आरती: पाठ समाप्त होने के बाद देवी के सामने दीपक को चारों ओर घुमाएं और आरती गएँ। इससे पूजा की पूर्णता होती है और देवी की कृपा प्राप्त होती है।
  • प्रार्थना: देवी के सामने हाथ जोड़कर प्रार्थना करें और अपनी मनोकामनाओं के लिए संकल्प लें। अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए देवी से आशीर्वाद मांगें।
  • प्रसाद वितरण: देवी के सामने चढ़ाएं गए प्रसाद को भक्तों में वितरित करें और स्वयं भी ग्रहण करें। यह भक्ति और समर्पण का प्रतीक है।
  • ध्यान और विश्राम: पाठ के बाद कुछ समय ध्यान लगाएं और मानसिक रूप से शांत रहें। यह आपकी भक्ति को और गहरा बनाएगा।
  • पूजा स्थल की सफाई: पाठ के बाद पूजा स्थल को साफ करें और वहां से पूजा सामग्री को व्यवस्थित तरीके से हटा दें।

इन विधियों का पालन करके पाठ को सही तरीके से किया जा सकता है और देवी की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है।

पाठ करने के लाभ

  • आध्यात्मिक उन्नति: पाठ से आध्यात्मिक उन्नति होती है। यह व्यक्ति को देवी की दिव्य शक्ति और ज्ञान से अवगत कराता है।
  • मानसिक शांति: पाठ के दौरान ध्यान और भक्ति से मानसिक शांति प्राप्त होती है। यह तनाव और चिंता को कम करता है और मन को शांत करता है।
  • सकारात्मक ऊर्जा: पाठ से वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, जिससे नकारात्मकता दूर होती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
  • स्वास्थ्य: नियमित पाठ से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। यह तनाव और संबंधित बीमारियों से राहत दिलाता है।
  • सुख और समृद्धि: देवी की भक्ति और पाठ से जीवन में सुख और समृद्धि प्राप्त होती है। यह आर्थिक स्थिति में भी सुधार कर सकता है।
  • संबंधों में सुधार: परिवार के सदस्य मिलकर पाठ करने से पारिवारिक संबंध मजबूत होते हैं और घर में सुख-शांति बनी रहती है।
  • आध्यात्मिक रक्षा: सप्तशती पाठ से व्यक्ति की आध्यात्मिक रक्षा होती है और किसी भी नकारात्मक शक्ति या संकट से सुरक्षा मिलती है।
  • मनोकामना: पाठ से देवी की कृपा प्राप्त होती है, जो मनोकामनाओं की पूर्ति में मदद करती है।
  • धैर्य और संयम: पाठ के दौरान ध्यान और भक्ति से धैर्य और संयम की भावना विकसित होती है, जो जीवन की समस्याओं का सामना करने में सहायक होती है।
  • सामाजिक मान्यता: नियमित पाठ से धार्मिक और सामाजिक मान्यता प्राप्त होती है। यह आपकी धार्मिक छवि को भी मजबूत करता है।
  • धार्मिक पवित्रता: पाठ करने से व्यक्ति की धार्मिक पवित्रता बढ़ती है और उसकी भक्ति में निष्ठा और समर्पण की भावना हो।
  • प्रेरणा और उत्साह: पाठ के दौरान देवी की भक्ति और शक्ति से प्रेरणा और उत्साह प्राप्त होता है, जिससे जीवन में उत्साह और ऊर्जा बनी रहती है।
  • समय की पाबंदी: नियमित पाठ से समय की पाबंदी और अनुशासन की भावना विकसित होती है, जो जीवन को व्यवस्थित और सफल बनाती है।

इन लाभों से यह स्पष्ट होता है कि यह पाठ आध्यात्मिक, मानसिक, शारीरिक, और सामाजिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है।

FAQ

इस पाठ को करने से पारिवारिक संबंधों में कैसे सुधार होता है?

परिवार के सदस्य मिलकर पाठ करने से पारिवारिक संबंध मजबूत होते हैं और घर में सुख-शांति बनी रहती है।

क्या पाठ के बाद विशेष पूजा की आवश्यकता होती है?

पाठ का सही तरीका क्या है?

क्या पाठ के लिए विशेष दिन या समय का महत्व है?

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