Durga Raksha Kavach | दुर्गा रक्षा कवच :

दुर्गा रक्षा कवच एक अत्यंत प्रभावशाली और शक्तिशाली स्तोत्र है, जो देवी दुर्गा की कृपा प्राप्त करने के लिए पाठ किया जाता है। Durga Raksha Kavach भक्तों को सुरक्षा और रक्षा प्रदान करने के लिए जानी जाती है। हिंदू धर्म में देवी दुर्गा को शक्ति, साहस, और विजय की देवी माना जाता है। इस कवच का पाठ न केवल साधक को बाहरी संकटों से बचाता है, बल्कि यह आंतरिक शक्ति और संतुलन भी प्रदान करता है।

रक्षा कवच का नियमित पाठ करने से साधक जीवन के हर क्षेत्र में सफलता और खुशियों का अनुभव करता है। इसके साथ-साथ आप दुर्गा सप्तशती कवच और दुर्गा कवच लिरिक्स का पाठ भी कर सकते है। इस दुर्गा कवच लिरिक्स को विस्तारपूर्वक हमने आपके लिए नीचे उपलब्ध कराया है

दुर्गा रक्षा कवच

ऋषि मारकंडे ने पूछा जभी ,
दया करके ब्रह्माजी बोले तभी।
कि जो गुप्त मंत्र है संसार में।
हैं सब शक्तियां जिसके अधिकार में।।
हर इक का जो कर सकता उपकार है,
जिसे जपने से बेडा ही पार है।
पवित्र कवच दुर्गा बलशाली का ,
जो हर काम पूरा करे सवाली का।
सुनो मारकंडे मैं समझाता हूँ,
मैं नवदुर्गा के नाम बतलाता हूँ।
कवच की मैं सुन्दर चौपाई बना ,
जो अत्यंत है गुप्त देऊं बता।
नव दुर्गा का कवच यह, पढे जो मन चित लाये ,
उस पे किसी प्रकार का, कभी कष्ट न आये।
कहो जय जय महारानी की ,
जय दुर्गा अष्ट भवानी की।

पहली शैलपुत्री कहलावे, दूसरी ब्रह्मचरिणी मन भावे।
तीसरी चंद्रघंटा शुभनाम, चौथी कुश्मांड़ा सुख धाम।
पांचवी देवी स्कंद माता, छटी कात्यायनी विख्याता।
सातवी कालरात्रि महामाया, आठवी महागौरी जगजाया।
नौवी सिद्धिधात्रि जग जाने, नव दुर्गा के नाम बखाने।
महासंकट में वन में रण में, रोग कोई उपजे जिन तन में।
महाविपत्ति में व्योहार में, मान चाहे जो राज दरबार में।
शक्ति कवच को सुने सुनाये, मनोकामना सिद्धि नर पाए।
चामुंडा है प्रेत पर, वैष्णवी गरुड़ सवार, बैल चढी महेश्वरी, हाथ लिए हथियार।

कहो जय जय जय महारानी की,
जय दुर्गा अष्ट भवानी की।

हंस सवारी वाराही की, मोर चढी दुर्गा कौमारी।
लक्ष्मी देवी कमल आसीना, ब्रह्मी हंस चढी ले वीणा।
ईश्वरी सदा करे बैल सवारी, भक्तन की करती रखवारी।
शंख चक्र शक्ति त्रिशुला, हल मूसल कर कमल के फ़ूला।
दैत्य नाश करने के कारण, रुप अनेक कीन है धारण।
बार बार चरण सीस नवाऊं, जगदम्बे के गुण को गाऊँ।
कष्ट निवारण बलशाली माँ, दुष्ट संघारण महाकाली माँ।
कोटि कोटि माता प्रणाम, पूर्ण कीजो मेरे काम।
दया करो बलशालिनी, दास के कष्ट मिटाओ।
मेरी रक्षा को सदा, सिंह चढी माँ आओ।

कहो जय जय जय महारानी की
जय दुर्गा अष्ट भवानी की।

अग्नि से अग्नि देवता, पूर्व दिशा में ऐन्द्री।
दक्षिण में वाराही मेरी, नैऋत्य में खडग धारिणी।
वायु से माँ मृगवाहिनी, पश्चिम में देवी वारुणी।
उत्तर में माँ कौमारी जी, ईशान में शूल धारी जी।
ब्रह्माणी माता अर्श पर, माँ वैष्णवी इस फर्श पर।
चामुंडा दस दिशाओं में, हर कष्ट तुम मेरा हरो।
संसार में माता मेरी, रक्षा करो रक्षा करो।

सन्मुख मेरे देवी जया, पाछे हो माता विजया।
अजिता खड़ी बाएं मेरे, अपराजिता दायें मेरे।
उद्योतिनी माँ शिखा की, माँ उमा देवी सिर की ही।
माला धारी ललाट की, और भृकुटि की माँ यशस्वनी।
भृकुटि के मध्य त्रयनेत्रा, यम घंटा दोनो नासिका।
काली कपोलों की कर्ण, मूलों की माता शंकरी।
नासिका में अंश अपना, माँ सुगंधा तुम धरो।
संसार में माता मेरी, रक्षा करो रक्षा करो।

ऊपर व नीचे होठों की, माँ चर्चका अमृतकली।
जीभा की माता सरस्वती, दांतों की कौमारी सती।
इस कंठ की माँ चण्डिका, और चित्रघंटा घंटी की।
कामाक्षी माँ ठोड़ी की, माँ मंगला इस वाणी की।
ग्रीवा की भद्रकाली माँ, रक्षा करे बलशाली माँ।
दोनो भुजाओं की मेरे, रक्षा करे धनु धारणी।
दो हाथों के सब अंगों की, रक्षा करे जगतारणी।
शूलेश्वरी, कूलेश्वरी, महादेवी शोक विनाशानी।
छाती स्तनों और कन्धों की, रक्षा करे जगवासिनी।
हृदय उदर और नाभि के, कटि भाग के सब अंगों की।
गुह्येश्वरी माँ पूतना, जग जननी श्यामा रंग की।
घुटनों जन्घाओं की करे रक्षा वो विंध्यवासिनी।
टखनों व पाँव की करे रक्षा वो शिव की दासनी।
रक्त मांस और हड्डियों से जो बना शरीर।
आतों और पित वात में, भरा अग्न और नीर।
बल बुद्धि अंहकार और, प्राण अपान समान।
सत, रज, तम के गुणों में फँसी है यह जान।
धार अनेकों रुप ही रक्षा करियो आन।
तेरी कृपा से ही माँ सब का है कल्याण।
आयु यश और कीर्ति धन सम्पति परिवार।
ब्रह्माणी और लक्ष्मी, पार्वती जगतार।
विद्या दे माँ सरस्वती सब सुखों की मूल।
दुष्टों से रक्षा करो हाथ लिए त्रिशूल।

भैरवी मेरे जीवन साथी की, रक्षा करो हमेश,
मान राज दरबार में देवें सदा नरेश।

यात्रा में दुःख कोई न, मेरे सिर पर आये।
कवच तुम्हारा हर जगह, मेरी करे सहाये।
ऐ जग जननी कर दया, इतना दो वरदान।
लिखा तुम्हारा कवच यह, पढे जो निश्चय मान।
मनवांछित फल पाए वो, मंगल मोद बसाए।
कवच तुम्हारा पढ़ते ही, नवनिधि घर आये।
ब्रह्माजी बोले सुनो मारकंडे।
यह दुर्गा कवच मैंने तुमको सुनाया।
रहा आज तक था गुप्त भेद सारा।
जगत की भलाई को मैंने बताया।
सभी शक्तियां जग की करके एकत्रित।
है मिट्टी की देह को इसे जो पहनाया।
मैं जिसने श्रद्धा से इसको पढ़ा जो।
सुना तो भी मुह माँगा वरदान पाया।
जो संसार में अपने मंगल को चाहे।
तो हरदम यही कवच गाता चला जा।
बियावान जंगल दिशाओं दशों में।
तू शक्ति की जय जय मनाता चला जा।
तू जल में, तू थल में, तू अग्नि पवन में।
कवच पहन कर मुस्कुराता चला जा।
निडर हो विचर मन जहाँ तेरा चाहे।
अपने कदम आगे बढ़ता चला जा।
तेरा मान धन धाम इससे बढेगा।
तू श्रद्धा से दुर्गा कवच को जो गाए।
यही मंत्र, यन्त्र यही तंत्र तेरा।
यही तेरे सिर से है संकट हटायें।
यही भूत और प्रेत के भय का नाशक।
यही कवच श्रद्धा व भक्ति बढ़ाये।
इसे निसदिन श्रद्धा से पढ़ कर।
जो चाहे तो मुह माँगा वरदान पाए।
इस कवच को प्रेम से जो पढे।
कृपा से आदि भवानी की, बल और बुद्धि बढे।
श्रद्धा से जपता रहे, जगदम्बे का नाम।
सुख भोगे संसार में, अंत मुक्ति सुखधाम।
कृपा करो मातेश्वरी, बालक मैं नादान।
तेरे दर पर आ गिरा, करो मैय्या कल्याण।


॥जय माता दी॥

Durga Raksha Kavach का पाठ करने की विधि

  1. स्नान और शुद्धता: पाठ आरंभ करने से पहले अच्छे से स्नान करें और शुद्ध वस्त्र पहनें। यह आपके मन और शरीर को शुद्ध करने का कार्य करेगा और पूजा के प्रति आपकी श्रद्धा को बढ़ाएगा।
  2. पूजा स्थल: एक साफ और शांति भरा स्थान चुनें। देवी दुर्गा की मूर्ति या चित्र को एक ऊँचे स्थान पर स्थापित करें।
  3. दीपक जलाएं: पूजा स्थल को फूलों, दीपक, और अगरबत्ती से सजाएं। यह वातावरण को पवित्र और सकारात्मक बनाता है।
  4. आसन ग्रहण करें: पूजा करते समय पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके एक शुद्ध आसन पर बैठें। आसन पर बैठने से आपकी ऊर्जा सकारात्मक बनी रहती है।
  5. संकल्प लें: हाथ में जल, चावल और फूल लेकर माँ दुर्गा का आह्वान करें और पाठ का संकल्प लें। यह संकल्प आपके मन में एक सकारात्मक भावना और ध्यान केंद्रित करने में मदद करेगा।
  6. गणेश वंदना: गणेश भगवान का स्मरण करें और उनकी पूजा करें, ताकि आपकी पूजा निर्विघ्न हो। गणेश वंदना करने से सभी विघ्न दूर होते हैं।
  7. पाठ: इसके बाद कवच का पाठ आरंभ करें। ध्यान रखें कि मंत्रों का उच्चारण स्पष्ट और सही हो। पाठ करते समय एक माला (108 मनकों की) का उपयोग करें, जिससे आप गिनती और एकाग्रता बनाए रख सकें।
  8. आरती: पाठ के बाद आरती का गायन करें। दीपक और अगरबत्ती के साथ आरती करें और भक्ति भाव से गाएं। माँ दुर्गा को फल, मिष्ठान्न, और अन्य भोग अर्पित करें।
  9. एकाग्रता: पाठ के दौरान देवी दुर्गा के स्वरूप का ध्यान करें। उन्हें अपनी समस्याओं और चिंताओं का समर्पण करें। मन में भक्ति और श्रद्धा के साथ पाठ करना महत्वपूर्ण है।
  10. प्रसाद वितरण:आरती के बाद अर्पित भोग को प्रसाद के रूप में परिवार के सदस्यों और अन्य भक्तों में बांटें। प्रसाद का ग्रहण करना देवी की कृपा का प्रतीक माना जाता है।
  11. ध्यान और प्रार्थना: पाठ के अंत में देवी दुर्गा से प्रार्थना करें कि वे आपकी रक्षा करें और आपके जीवन को सुख, शांति, और समृद्धि से भर दें। अपने सभी कष्टों और इच्छाओं को उनके चरणों में अर्पित करें।

इस विधि से पाठ करने से साधक को मानसिक शांति, सुरक्षा, और शक्ति का अनुभव होता है। माँ दुर्गा की कृपा से साधक हर प्रकार की बाधाओं और विपत्तियों से सुरक्षित रहता है।

इस पाठ के लाभ

इसका पाठ भक्तों के लिए अनेक लाभ प्रदान करता है। यह एक शक्तिशाली स्तोत्र है, जो साधक को मानसिक, शारीरिक, और आध्यात्मिक रूप से सुरक्षा और शक्ति प्रदान करता है। यहाँ कवच के प्रमुख लाभों का विवरण दिया गया है:

  • सुरक्षा और रक्षा: इसका पाठ करने से साधक को नकारात्मक शक्तियों, भूत-प्रेत, और अन्य अदृश्य संकटों से सुरक्षा मिलती है। यह कवच साधक को मानसिक और भौतिक रूप से सुरक्षित रखता है।
  • आत्मविश्वास: इस कवच के पाठ से साधक के आत्मविश्वास में वृद्धि होती है। जब व्यक्ति को लगता है कि देवी दुर्गा उनके साथ हैं, तो वह हर परिस्थिति का सामना साहस के साथ कर सकता है।
  • स्वास्थ्य: दुर्गा माँ के रक्षा कवच का पाठ मानसिक तनाव, चिंता, और शारीरिक रोगों से मुक्ति दिलाता है। नियमित पाठ करने से साधक को स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है और वह ताजगी का अनुभव करता है।
  • शत्रुओं से सुरक्षा: यह कवच शत्रुओं और विरोधियों के दुष्प्रभावों से बचाने में मदद करता है। साधक को अपने प्रतिकूल लोगों से लड़ने की शक्ति और साहस प्राप्त होता है।
  • आर्थिक समृद्धि: देवी दुर्गा की कृपा से साधक के जीवन में धन और समृद्धि का आगमन होता है। यह कवच आर्थिक कठिनाइयों से राहत दिलाने में मददगार होता है।
  • दृष्टि और फोकस: इसका पाठ करने से साधक की सोचने की क्षमता और एकाग्रता में सुधार होता है। यह पाठ व्यक्ति को अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है।
  • भावनात्मक संतुलन:इस कवच का नियमित पाठ करने से व्यक्ति की भावनाएँ स्थिर रहती हैं। यह साधक को मानसिक संतुलन बनाए रखने में मदद करता है, जिससे वह किसी भी तनावपूर्ण स्थिति का सामना कर सके।
  • परिवार में शांति: पाठ से परिवार के सदस्यों के बीच सामंजस्य और शांति बनाए रखने में मदद करता है। यह एक सकारात्मक वातावरण का निर्माण करता है।
  • विपत्तियों से मुक्ति: इसका पाठ करने से साधक सभी प्रकार की विपत्तियों, संकटों, और कष्टों से मुक्त होता है। यह साधक को हर प्रकार के संघर्ष से उबरने की शक्ति प्रदान करता है।

इन सभी लाभों के साथ, रक्षा कवच का पाठ एक साधक के जीवन को सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ाने में सहायक होता है। यह साधक को शक्ति, साहस, और सुरक्षा प्रदान करता है, जिससे वह हर चुनौती का सामना कर सके।

FAQ

श्री दुर्गा रक्षा कवच का पाठ कब करना चाहियें ?

इसका पाठ किसी भी समय किया जा सकता है। विशेष रूप से इसका पाठ नवरात्रि के दिनों में ज्यादा किया जाता है।

इसका पाठ किसको करना चाहिए ?

क्या अन्य किसी और भाषा में भी उपलब्ध है ?

क्या कवच को घर पर पढ़ना शुभ है?

इस कवच का पाठ कितनी बार करना चाहिए?

Spread the love

Leave a Comment