मां दुर्गा में तेरी दुआओं का असर देखता हूं, मैं चलते हुए हर सफर देखता हूं। तू पास नहीं होती फिर भी, तेरे आर्शिवाद का असर मैं हर पहर देखता हूं। है मेरी मां वो मजबूत दीवार, जिसके पीछे हमारा संसार। हर कदम पर देती हैं साथ, जीवन के सफर में हर कदम पर है उनका हाथ। सबसे पहले आपकी पूजा करें फिर होगा बाकी काम आ गया शुभ दिन मैं आपके चरणों में करता हूं प्रणाम हैप्पी दुर्गा नवमी मां वो फूल है जो कभी मुरझाती नहीं, मां वो धारा है जो कभी थकती नहीं। दुनिया की हर खुशी दुर्गा मां के कदमों में है, उससे बड़ा प्यार और कुछ होता नहीं। मां दुर्गा का आगमन, महामिलन उत्सव, भक्त के मन में प्रेम का नया राग नाच उठता है। पूजा के दिन आता है रंगीन रोशनी का स्पर्श, मां की प्रतिज्ञा में, दुख के सारे शब्द तैरते हैं। तुम मां हो, तुम शक्ति हो, तुम जीवनदायिनी हो, तेरी कृपा से दुःख हर जाते हैं मां दुर्गा के इस पर्व में दूर हो जाए आपका हर दुख मां दुर्गा की शक्ति अजेय है, उसके आगे हर मुश्किल निस्तेज है। दुष्टों का संहार करती है मां, उसकी कृपा से जीवन सजीव है। मां दुर्गा की कृपा से आपका जीवन सदा समृद्ध और खुशहाल रहे। आपको और आपके परिवार को दुर्गा पूजा की ढेर सारी शुभकामनाएं।। मां दुर्गा का दिल है सच्चा प्यारा, उससे बढ़कर नहीं कोई सितारा। उसकी ममता में है जन्नत छुपी, मां के बिना मेरा नहीं कोई सहारा। मेरी माता है वो छांव घनी, सूरज से भी तेज धनी। मेरे हर दर्द में रहती है साथ, दिल से समझती हर अर्थ । वह जननी है, वह कालिका है जिसके दरबार में कोई नहीं छूटता, वो हैं मां दुर्गा। हैप्पी दुर्गाष्टमी मां दुर्गा आ गई है भक्तों के मन हर्ष की भावना लाई है मिटे सब दुख, हो जाए पूरी मनोकामना दुर्गा पूजा में जगे सबके मन में नई आशा हैप्पी दुर्गाष्टमीमेरी मां है तो दुनिया है प्यारी, उससे ही तो खुशियां सारी। हर पल उसका आशीर्वाद मिले, जीवन में कभी ना कोई दुख खिले। मां दुर्गा का है रूप विकराल, पर भक्तों के लिए है ममता की मिसाल। जो सच्चे दिल से मां को पुकारे, दुर्गा मां देती हर दुख से निकाल। मेरी दुर्गा मां का प्यार, सबसे महान, उसके बिना हर खुशी है बेमान। वो है तो इस दुनिया में सब कुछ संभव है, दुर्गा के बिना जीवन अधूरा है। मांगने पर जहाँ पूरी हर मन्नत होती है, माँ के पैरों में ही तो वो जन्नत होती है एक दुनिया है जो समझाने से भी नहीं समझती, एक मां है जो बिन बोले सब समझ जाती Happy Durga Puja मां का सजा है कितना निराला दरबार, मां सुनती है सब भक्तों की पुकार। पूरे कर दो हमारे सारे अरमान, बहुत दूर से आए हैं हम मां तेरे द्वार। शुभ दुर्गा पूजा मां दुर्गा का पर्व है आया, साथ में ढेरों खुशियां लाया। दुर्गा पूजा की मंगलकामनाएं सबको आपके जीवन में रहे खुशियों का साया। शुभ दुर्गा पूजा मां का आशीर्वाद सदा रहे साथ, जीवन में हो खुशियों की बरसात। दुर्गा पूजा की शुभकामनाएं आपको, हर पल हो मंगल, हर दिन खास। मां की ज्योत जली है घर में दूर अज्ञान का अंधेरा हो आज आए मां आपके घर में नवमी की शुभकामनाएंमां की ज्योति से प्रेम मिलता है सबके दिलो को आनंद मिलता है जो भी जाता है माता के द्वार उसे कुछ न कुछ जरूर मिलता है मिलता है सच्चा सुख केवल मैया तुम्हारे चरणों में यह विनती है हर पल मां रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में

Happy Durga Puja Wishes | हैप्पी दुर्गा पूजा विशेश : बधाइयाँ भेजे

दुर्गा पूजा का पर्व हमारे हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण धार्मिक त्यौहार है, ऐसे में हैप्पी दुर्गा पूजा विशेश अपनों को भेजकर आप उनके जीवन में नई ऊर्जा और सकारात्मकता का संचार करते है। दुर्गा पूजा में माँ दुर्गा की आराधना और दुर्गा भजन किये जातें है। इस धार्मिक अवसर पर आप अपने सगे-सम्बन्धियों को happy Durga puja wishes भेजकर … अभी देखें

ॐ नमश्चण्डिकायै। ॐ यद्गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम्।  यन्न कस्य चिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह॥1॥ ॥मार्कण्डेय उवाच॥ ॥ब्रह्मोवाच॥ अस्ति गुह्यतमं विप्रा सर्वभूतोपकारकम्। दिव्यास्तु कवचं पुण्यं तच्छृणुष्वा महामुने॥2॥ प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी। तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्॥3॥ पचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्॥4॥ नवमं सिद्धिदात्री च नव दुर्गाः प्रकीर्तिताः। उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना॥5॥ अग्निना दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रणे। विषमे दुर्गमे चैव भयार्ताः शरणं गताः॥6॥ न तेषां जायते किंचिदशुभं रणसंकटे। नापदं तस्य पश्यामि शोकदुःखभयं न ही॥7॥ यैस्तु भक्त्या स्मृता नूनं तेषां वृद्धिः प्रजायते। ये त्वां स्मरन्ति देवेशि रक्षसे तान्न संशयः॥8॥ प्रेतसंस्था तु चामुण्डा वाराही महिषासना। ऐन्द्री गजसमारूढा वैष्णवी गरुडासना॥9॥ माहेश्वरी वृषारूढा कौमारी शिखिवाहना। लक्ष्मी: पद्मासना देवी पद्महस्ता हरिप्रिया॥10॥ श्वेतरूपधारा देवी ईश्वरी वृषवाहना। ब्राह्मी हंससमारूढा सर्वाभरणभूषिता॥ 11॥ इत्येता मातरः सर्वाः सर्वयोगसमन्विताः। नानाभरणशोभाढया नानारत्नोपशोभिता:॥ 12॥ दृश्यन्ते रथमारूढा देव्याः क्रोधसमाकुला:। शंखम चक्रं गदां शक्तिं हलं च मुसलायुधम्॥13॥ खेटकं तोमरं चैव परशुं पाशमेव च। कुन्तायुधं त्रिशूलं च शार्ङ्गमायुधमुत्तमम्॥ 14॥ दैत्यानां देहनाशाय भक्तानामभयाय च। धारयन्त्यायुद्धानीथं देवानां च हिताय वै॥ 15॥ नमस्तेऽस्तु महारौद्रे महाघोरपराक्रमे। महाबले महोत्साहे महाभयविनाशिनि॥16॥ त्राहि मां देवि दुष्प्रेक्ष्ये शत्रूणां भयवर्धिनि। प्राच्यां रक्षतु मामैन्द्रि आग्नेय्यामग्निदेवता॥ 17॥ दक्षिणेऽवतु वाराही नैऋत्यां खड्गधारिणी। प्रतीच्यां वारुणी रक्षेद् वायव्यां मृगवाहिनी॥ 18॥ उदीच्यां पातु कौमारी ऐशान्यां शूलधारिणी। ऊर्ध्वं ब्रह्माणी में रक्षेदधस्ताद् वैष्णवी तथा॥ 19॥ एवं दश दिशो रक्षेच्चामुण्डा शववाहाना। जाया मे चाग्रतः पातु: विजया पातु पृष्ठतः॥ 20॥ अजिता वामपार्श्वे तु दक्षिणे चापराजिता। शिखामुद्योतिनि रक्षेदुमा मूर्ध्नि व्यवस्थिता॥21॥ मालाधारी ललाटे च भ्रुवो रक्षेद् यशस्विनी। त्रिनेत्रा च भ्रुवोर्मध्ये यमघण्टा च नासिके॥ 22॥ शङ्खिनी चक्षुषोर्मध्ये श्रोत्रयोर्द्वारवासिनी। कपोलौ कालिका रक्षेत्कर्णमूले तु शङ्करी ॥ 23॥ नासिकायां सुगन्‍धा च उत्तरोष्ठे च चर्चिका। अधरे चामृतकला जिह्वायां च सरस्वती॥ 24॥ न्तान् रक्षतु कौमारी कण्ठदेशे तु चण्डिका। घण्टिकां चित्रघण्टा च महामाया च तालुके॥ 25॥ कामाक्षी चिबुकं रक्षेद्‍ वाचं मे सर्वमंगला। ग्रीवायां भद्रकाली च पृष्ठवंशे धनुर्धारी॥ 26॥ नीलग्रीवा बहिःकण्ठे नलिकां नलकूबरी। स्कन्धयोः खड्गिनी रक्षेद्‍ बाहू मे वज्रधारिणी॥27॥ हस्तयोर्दण्डिनी रक्षेदम्बिका चान्गुलीषु च। नखाञ्छूलेश्वरी रक्षेत्कुक्षौ रक्षेत्कुलेश्वरी॥28॥ स्तनौ रक्षेन्‍महादेवी मनः शोकविनाशिनी। हृदये ललिता देवी उदरे शूलधारिणी॥ 29॥ नाभौ च कामिनी रक्षेद्‍ गुह्यं गुह्येश्वरी तथा। पूतना कामिका मेढ्रं गुहे महिषवाहिनी॥30॥ कट्यां भगवतीं रक्षेज्जानूनी विन्ध्यवासिनी। जङ्घे महाबला रक्षेत्सर्वकामप्रदायिनी॥31॥ गुल्फयोर्नारसिंही च पादपृष्ठे तु तैजसी। पादाङ्गुलीषु श्रीरक्षेत्पादाध:स्तलवासिनी॥32॥  नखान् दंष्ट्रा कराली च केशांशचैवोर्ध्वकेशिनी। रोमकूपेषु कौबेरी त्वचं वागीश्वरी तथा॥33॥  रक्तमज्जावसामांसान्यस्थिमेदांसि पार्वती। अन्त्राणि कालरात्रिश्च पित्तं च मुकुटेश्वरी॥ 34 ॥ पद्मावती पद्मकोशे कफे चूडामणिस्तथा। ज्वालामुखी नखज्वालामभेद्या सर्वसन्धिषु॥35 ॥  शुक्रं ब्रह्माणी मे रक्षेच्छायां छत्रेश्वरी तथा। अहङ्कारं मनो बुद्धिं रक्षेन्मे धर्मधारिणी॥36॥  प्राणापानौ तथा व्यानमुदानं च समानकम्। वज्रहस्ता च मे रक्षेत्प्राणं कल्याणशोभना॥37॥ रसे रूपे च गन्धे च शब्दे स्पर्शे च योगिनी। सत्वं रजस्तमश्चैव रक्षेन्नारायणी सदा॥38॥  आयू रक्षतु वाराही धर्मं रक्षतु वैष्णवी। यशः कीर्तिं च लक्ष्मीं च धनं विद्यां च चक्रिणी॥39॥  गोत्रमिन्द्राणि मे रक्षेत्पशून्मे रक्ष चण्डिके। पुत्रान्‌ रक्षेन्महालक्ष्मीर्भार्यां रक्षतु भैरवी॥40॥  पन्थानं सुपथा रक्षेन्मार्गं क्षेमकरी तथा। राजद्वारे महालक्ष्मीर्विजया सर्वतः स्थिता॥ 41॥  रक्षाहीनं तु यत्स्थानं वर्जितं कवचेन तु। तत्सर्वं रक्ष मे देवी जयन्ती पापनाशिनी॥ 42॥  रक्षाहीनं तु यत्स्थानं वर्जितं कवचेन तु। तत्सर्वं रक्ष मे देवी जयन्ती पापनाशिनी॥43॥ पदमेकं न गच्छेतु यदिच्छेच्छुभमात्मनः। कवचेनावृतो नित्यं यात्र यत्रैव गच्छति॥44॥ तत्र तत्रार्थलाभश्च विजयः सर्वकामिकः। यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्चितम्। परमैश्वर्यमतुलं प्राप्स्यते भूतले पुमान्॥ निर्भयो जायते मर्त्यः सङ्ग्रमेष्वपराजितः। त्रैलोक्ये तु भवेत्पूज्यः कवचेनावृतः पुमान्॥45॥ इदं तु देव्याः कवचं देवानामपि दुर्लभम्। य: पठेत्प्रयतो नित्यं त्रिसन्ध्यं श्रद्धयान्वितः॥46॥ दैवी कला भवेत्तस्य त्रैलोक्येष्वपराजितः। जीवेद् वर्षशतं साग्रामपमृत्युविवर्जितः॥47॥ नश्यन्ति टयाधय: सर्वे लूताविस्फोटकादयः। स्थावरं जङ्गमं चैव कृत्रिमं चापि यद्विषम्॥ 48॥ अभिचाराणि सर्वाणि मन्त्रयन्त्राणि भूतले। भूचराः खेचराशचैव जलजाश्चोपदेशिकाः॥49॥ सहजा कुलजा माला डाकिनी शाकिनी तथा। अन्तरिक्षचरा घोरा डाकिन्यश्च महाबला॥ 50॥ ग्रहभूतपिशाचाश्च यक्षगन्धर्वराक्षसा:। ब्रह्मराक्षसवेतालाः कूष्माण्डा भैरवादयः॥ 51॥ नश्यन्ति दर्शनात्तस्य कवचे हृदि संस्थिते। मानोन्नतिर्भावेद्राज्यं तेजोवृद्धिकरं परम्॥ 52॥ नश्यन्ति दर्शनात्तस्य कवचे हृदि संस्थिते। मानोन्नतिर्भावेद्राज्यं तेजोवृद्धिकरं परम्॥ 53॥ यशसा वद्धते सोऽपी कीर्तिमण्डितभूतले। जपेत्सप्तशतीं चणण्डीं कृत्वा तु कवचं पूरा॥ 54॥ यावद्भूमण्डलं धत्ते सशैलवनकाननम्। तावत्तिष्ठति मेदिनयां सन्ततिः पुत्रपौत्रिकी॥ देहान्ते परमं स्थानं यात्सुरैरपि दुर्लभम्। प्राप्नोति पुरुषो नित्यं महामायाप्रसादतः॥55॥ लभते परमं रूपं शिवेन सह मोदते ॥ॐ॥ ॥ 56॥ ।। इति देव्या: कवचं सम्पूर्णम् ।

Durga Saptashati Kavach | दुर्गा सप्तशती कवच

दुर्गा सप्तशती कवच हिंदू धर्म के सबसे शक्तिशाली और महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक है, जो देवी दुर्गा की महिमा और उनकी शक्ति का वर्णन करता है। Durga Saptashati Kavach देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों की स्तुति करता है और साधक को हर प्रकार की नकारात्मक शक्तियों, बाधाओं, और शत्रुओं से सुरक्षा प्रदान करता है। इसमें देवी दुर्गा के 108 … अभी देखें

ऋषि मारकंडे ने पूछा जभी , दया करके ब्रह्माजी बोले तभी। कि जो गुप्त मंत्र है संसार में। हैं सब शक्तियां जिसके अधिकार में।। हर इक का जो कर सकता उपकार है, जिसे जपने से बेडा ही पार है। पवित्र कवच दुर्गा बलशाली का , जो हर काम पूरा करे सवाली का। सुनो मारकंडे मैं समझाता हूँ, मैं नवदुर्गा के नाम बतलाता हूँ। कवच की मैं सुन्दर चौपाई बना , जो अत्यंत है गुप्त देऊं बता। नव दुर्गा का कवच यह, पढे जो मन चित लाये , उस पे किसी प्रकार का, कभी कष्ट न आये। कहो जय जय महारानी की , जय दुर्गा अष्ट भवानी की। पहली शैलपुत्री कहलावे, दूसरी ब्रह्मचरिणी मन भावे। तीसरी चंद्रघंटा शुभनाम, चौथी कुश्मांड़ा सुख धाम। पांचवी देवी स्कंद माता, छटी कात्यायनी विख्याता। सातवी कालरात्रि महामाया, आठवी महागौरी जगजाया। नौवी सिद्धिधात्रि जग जाने, नव दुर्गा के नाम बखाने। महासंकट में वन में रण में, रोग कोई उपजे जिन तन में। महाविपत्ति में व्योहार में, मान चाहे जो राज दरबार में। शक्ति कवच को सुने सुनाये, मनोकामना सिद्धि नर पाए। चामुंडा है प्रेत पर, वैष्णवी गरुड़ सवार, बैल चढी महेश्वरी, हाथ लिए हथियार। कहो जय जय जय महारानी की, जय दुर्गा अष्ट भवानी की। हंस सवारी वाराही की, मोर चढी दुर्गा कौमारी। लक्ष्मी देवी कमल आसीना, ब्रह्मी हंस चढी ले वीणा। ईश्वरी सदा करे बैल सवारी, भक्तन की करती रखवारी। शंख चक्र शक्ति त्रिशुला, हल मूसल कर कमल के फ़ूला। दैत्य नाश करने के कारण, रुप अनेक कीन है धारण। बार बार चरण सीस नवाऊं, जगदम्बे के गुण को गाऊँ। कष्ट निवारण बलशाली माँ, दुष्ट संघारण महाकाली माँ। कोटि कोटि माता प्रणाम, पूर्ण कीजो मेरे काम। दया करो बलशालिनी, दास के कष्ट मिटाओ। मेरी रक्षा को सदा, सिंह चढी माँ आओ। कहो जय जय जय महारानी की जय दुर्गा अष्ट भवानी की। अग्नि से अग्नि देवता, पूर्व दिशा में ऐन्द्री। दक्षिण में वाराही मेरी, नैऋत्य में खडग धारिणी। वायु से माँ मृगवाहिनी, पश्चिम में देवी वारुणी। उत्तर में माँ कौमारी जी, ईशान में शूल धारी जी। ब्रह्माणी माता अर्श पर, माँ वैष्णवी इस फर्श पर। चामुंडा दस दिशाओं में, हर कष्ट तुम मेरा हरो। संसार में माता मेरी, रक्षा करो रक्षा करो। सन्मुख मेरे देवी जया, पाछे हो माता विजया। अजिता खड़ी बाएं मेरे, अपराजिता दायें मेरे। उद्योतिनी माँ शिखा की, माँ उमा देवी सिर की ही। माला धारी ललाट की, और भृकुटि की माँ यशस्वनी। भृकुटि के मध्य त्रयनेत्रा, यम घंटा दोनो नासिका। काली कपोलों की कर्ण, मूलों की माता शंकरी। नासिका में अंश अपना, माँ सुगंधा तुम धरो। संसार में माता मेरी, रक्षा करो रक्षा करो। ऊपर व नीचे होठों की, माँ चर्चका अमृतकली। जीभा की माता सरस्वती, दांतों की कौमारी सती। इस कंठ की माँ चण्डिका, और चित्रघंटा घंटी की। कामाक्षी माँ ठोड़ी की, माँ मंगला इस वाणी की। ग्रीवा की भद्रकाली माँ, रक्षा करे बलशाली माँ। दोनो भुजाओं की मेरे, रक्षा करे धनु धारणी। दो हाथों के सब अंगों की, रक्षा करे जगतारणी। शूलेश्वरी, कूलेश्वरी, महादेवी शोक विनाशानी। छाती स्तनों और कन्धों की, रक्षा करे जगवासिनी। हृदय उदर और नाभि के, कटि भाग के सब अंगों की। गुह्येश्वरी माँ पूतना, जग जननी श्यामा रंग की। घुटनों जन्घाओं की करे रक्षा वो विंध्यवासिनी। टखनों व पाँव की करे रक्षा वो शिव की दासनी। रक्त मांस और हड्डियों से जो बना शरीर। आतों और पित वात में, भरा अग्न और नीर। बल बुद्धि अंहकार और, प्राण अपान समान। सत, रज, तम के गुणों में फँसी है यह जान। धार अनेकों रुप ही रक्षा करियो आन। तेरी कृपा से ही माँ सब का है कल्याण। आयु यश और कीर्ति धन सम्पति परिवार। ब्रह्माणी और लक्ष्मी, पार्वती जगतार। विद्या दे माँ सरस्वती सब सुखों की मूल। दुष्टों से रक्षा करो हाथ लिए त्रिशूल। भैरवी मेरे जीवन साथी की, रक्षा करो हमेश, मान राज दरबार में देवें सदा नरेश। यात्रा में दुःख कोई न, मेरे सिर पर आये। कवच तुम्हारा हर जगह, मेरी करे सहाये। ऐ जग जननी कर दया, इतना दो वरदान। लिखा तुम्हारा कवच यह, पढे जो निश्चय मान। मनवांछित फल पाए वो, मंगल मोद बसाए। कवच तुम्हारा पढ़ते ही, नवनिधि घर आये। ब्रह्माजी बोले सुनो मारकंडे। यह दुर्गा कवच मैंने तुमको सुनाया। रहा आज तक था गुप्त भेद सारा। जगत की भलाई को मैंने बताया। सभी शक्तियां जग की करके एकत्रित। है मिट्टी की देह को इसे जो पहनाया। मैं जिसने श्रद्धा से इसको पढ़ा जो। सुना तो भी मुह माँगा वरदान पाया। जो संसार में अपने मंगल को चाहे। तो हरदम यही कवच गाता चला जा। बियावान जंगल दिशाओं दशों में। तू शक्ति की जय जय मनाता चला जा। तू जल में, तू थल में, तू अग्नि पवन में। कवच पहन कर मुस्कुराता चला जा। निडर हो विचर मन जहाँ तेरा चाहे। अपने कदम आगे बढ़ता चला जा। तेरा मान धन धाम इससे बढेगा। तू श्रद्धा से दुर्गा कवच को जो गाए। यही मंत्र, यन्त्र यही तंत्र तेरा। यही तेरे सिर से है संकट हटायें। यही भूत और प्रेत के भय का नाशक। यही कवच श्रद्धा व भक्ति बढ़ाये। इसे निसदिन श्रद्धा से पढ़ कर। जो चाहे तो मुह माँगा वरदान पाए। इस कवच को प्रेम से जो पढे। कृपा से आदि भवानी की, बल और बुद्धि बढे। श्रद्धा से जपता रहे, जगदम्बे का नाम। सुख भोगे संसार में, अंत मुक्ति सुखधाम। कृपा करो मातेश्वरी, बालक मैं नादान। तेरे दर पर आ गिरा, करो मैय्या कल्याण। ॥जय माता दी॥

Durga Raksha Kavach | दुर्गा रक्षा कवच :

दुर्गा रक्षा कवच एक अत्यंत प्रभावशाली और शक्तिशाली स्तोत्र है, जो देवी दुर्गा की कृपा प्राप्त करने के लिए पाठ किया जाता है। Durga Raksha Kavach भक्तों को सुरक्षा और रक्षा प्रदान करने के लिए जानी जाती है। हिंदू धर्म में देवी दुर्गा को शक्ति, साहस, और विजय की देवी माना जाता है। इस कवच का पाठ न केवल साधक … अभी देखें

Durga Devi Mantram सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके, शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोसस्तुते।1। ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै।2। पिण्डज प्रवरा चण्डकोपास्त्रुता,प्रसीदम तनुते महिं चंद्रघण्टातिरुता। पिंडज प्रवररुधा चन्दकपास्कर्युत, प्रसिदं तनुते महयम चंद्रघंतेति विश्रुत। 3। ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी। दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।4। या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः। या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः। या देवी सर्वभूतेषु तुष्टिरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः। या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः। या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः। या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः। या देवी सर्वभूतेषु शांतिरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।5।

Durga Devi Mantram | दुर्गा देवी मंत्रम : ध्यान और भक्ति

दुर्गा देवी मंत्रम या दुर्गा मंत्र दुर्गा माँ की कृपा प्राप्त करने के लिए अत्यंत प्रभावी माने जाते हैं। दुर्गा देवी, जिन्हें शक्ति और सृजन की देवी के रूप में पूजा जाता है, हिंदू धर्म में सर्वोच्च स्थान रखती हैं। Durga Devi Mantram का जाप करते समय विशेष ध्यान और साधना की आवश्यकता होती है। यें आदिशक्ति का प्रतीक हैं … अभी देखें

कैसे पहुँचें दुर्गा मंदिर वाराणसी के केंद्र में स्थित दुर्गा मंदिर तक पहुँचने के लिए यातायात के विभिन्न साधन उपलब्ध हैं। यह मंदिर वाराणसी रेलवे स्टेशन से लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, और बाबतपुर हवाई अड्डे से इसकी दूरी लगभग 25 किलोमीटर है। यहां तक पहुंचने के लिए टैक्सी, ऑटो-रिक्शा और स्थानीय बसें आसानी से उपलब्ध हैं। Durga Temple Varanasi का इतिहास दुर्गा टेम्पल वाराणसी का निर्माण 18वीं शताब्दी में बंगाल की महारानी भवानी ने कराया था। यह मंदिर हिंदू धर्म की शक्ति और साहस की देवी दुर्गा को समर्पित है। मंदिर के इतिहास से जुड़े कई कथाएं हैं। कहा जाता है कि एक समय वाराणसी में देवी दुर्गा की कृपा से लोग सुरक्षित और समृद्ध थे। देवी दुर्गा ने इस क्षेत्र में अपने दिव्य आशीर्वाद से भक्तों की रक्षा की थी। महारानी भवानी को एक सपना आया, जिसमें उन्हें देवी दुर्गा की प्रतिमा स्थापित करने का आदेश मिला। इस निर्देश के बाद, उन्होंने इस मंदिर का निर्माण कराया। मंदिर का नाम "दुर्गा कुंड" भी है, क्योंकि इसके पास एक विशाल कुंड है, जो मंदिर के प्रमुख आकर्षणों में से एक है। कुंड का जल पवित्र माना जाता है, और यहाँ स्नान करने से लोगों के पाप नष्ट होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है, ऐसा विश्वास किया जाता है। वास्तुकला और शिल्पकला दुर्गा मंदिर वाराणसी के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है और यह उत्तर भारतीय नागर शैली की वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। लाल रंग के पत्थरों से निर्मित इस मंदिर की संरचना अत्यंत भव्य है। नागर शैली के मंदिरों की पहचान उनके गर्भगृह की आकृति, शिखर और जटिल नक्काशी से होती है, और दुर्गा मंदिर इस शैली की विशेषताओं का अद्वितीय नमूना है। मंदिर की चारदीवारी के भीतर का वातावरण अत्यंत शांतिपूर्ण है। मंदिर के गर्भगृह में देवी दुर्गा की एक शक्तिशाली प्रतिमा विराजमान है, जो अपने वाहन सिंह पर सवार हैं। यह प्रतिमा मंदिर के मुख्य आकर्षणों में से एक है। देवी के कई हाथ हैं, जिनमें वे विभिन्न अस्त्र-शस्त्र धारण करती हैं, जो उनकी शक्ति और साहस का प्रतीक हैं। मंदिर की बाहरी संरचना पर सुंदर नक्काशी और शिल्पकारी का उत्कृष्ट प्रदर्शन देखा जा सकता है। मंदिर के चारों ओर कई छोटे मंदिर और धार्मिक संरचनाएँ भी स्थित हैं, जो इस स्थान की पवित्रता और धार्मिक महत्ता को और अधिक बढ़ाते हैं। मंदिर का धार्मिक महत्त्व दुर्गा मंदिर केवल वास्तुकला के दृष्टिकोण से ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि इसका धार्मिक महत्व भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। देवी दुर्गा हिंदू धर्म में शक्ति, साहस और दुष्टता के विनाश की देवी मानी जाती हैं। उन्हें “महिषासुर मर्दिनी” के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि उन्होंने असुर महिषासुर का वध किया था। इस मंदिर में आने वाले भक्त देवी दुर्गा की पूजा-अर्चना करते हैं, उनके सामने अपनी विनती रखते हैं और उनके आशीर्वाद की कामना करते हैं। विशेषकर नवरात्रि के समय, इस मंदिर की रौनक अद्वितीय होती है। नवरात्रि के नौ दिनों के दौरान, दुर्गा मंदिर को विशेष रूप से सजाया जाता है और यहाँ दुर्गा भजन और भव्य पूजा अनुष्ठानोंका आयोजन होता है। भक्त देवी दुर्गा की कृपा प्राप्त करने के लिए दुर्गा स्तोत्र, दुर्गा सप्तशती पाठ और दुर्गा आरती करते हैं और व्रत रखते हैं। इस दौरान मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है और पूरा वातावरण भक्ति और आस्था से भर जाता है। प्राचीन मान्यताएं और कथाएँ दुर्गा मंदिर से जुड़ी कई पौराणिक कथाएँ और धार्मिक मान्यताएँ हैं। एक प्रमुख कथा के अनुसार, देवी दुर्गा की मूर्ति मंदिर में स्वाभाविक रूप से प्रकट हुई थी और इसे किसी मानव द्वारा स्थापित नहीं किया गया था। यह भी कहा जाता है कि देवी दुर्गा अपने भक्तों की प्रार्थनाओं का उत्तर देती हैं और उनकी रक्षा करती हैं। मंदिर के पास स्थित कुंड को लेकर भी कई धार्मिक मान्यताएँ हैं। ऐसा कहा जाता है कि पहले यह कुंड गंगा नदी से जुड़ा हुआ था, और इस कुंड में स्नान करने से पापों का नाश होता है। आज भी भक्तगण इस कुंड के जल को पवित्र मानते हैं और यहाँ स्नान करने के लिए आते हैं। सांस्कृतिक महत्त्व दुर्गा मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक धरोहर का भी प्रतीक है। वाराणसी की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और धार्मिक परंपराओं का यह मंदिर एक अभिन्न हिस्सा है। यहाँ हर दिन न केवल स्थानीय लोग, बल्कि देशभर से और विदेशी पर्यटक भी आते हैं, जो इस मंदिर की धार्मिकता और भव्यता का अनुभव करते हैं। यह मंदिर हिंदू संस्कृति की शक्ति, सहिष्णुता और विश्वास का प्रतीक है, जो समय के साथ और मजबूत हुआ है

Durga Temple Varanasi | दुर्गा टेम्पल वाराणसी : दिव्य भक्ति स्थल

दुर्गा टेम्पल वाराणसी लाल पत्थरो से बना बहुत ही प्राचीन मंदिर है जिसकी मान्यता हमारे हिन्दू धर्म में बहुत ज्यादा है। इस मंदिर का निर्माण बंगाल की एक रानी ने करवाया था। मंदिर के पास में एक विशाल कुंड है जिसके कारण यह मंदिर दुर्गा कुंड मंदिर के नाम से भी प्रसिद्ध है। Durga Temple Varanasi में माता के आदि … अभी देखें

नमो नमो दुर्गे सुख करनी॥ नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥1॥   निरंकार है ज्योति तुम्हारी॥ तिहूं लोक फैली उजियारी॥2॥   शशि ललाट मुख महाविशाला॥ नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥3॥   रूप मातु को अधिक सुहावे॥ दरश करत जन अति सुख पावे॥4॥   तुम संसार शक्ति लै कीना॥ पालन हेतु अन्न धन दीना॥5॥   अन्नपूर्णा हुई जग पाला॥ तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥6॥   प्रलयकाल सब नाशन हारी॥ तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥7॥   शिव योगी तुम्हरे गुण गावें॥ ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥8॥   रूप सरस्वती को तुम धारा॥ दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥9॥   धरयो रूप नरसिंह को अम्बा॥ परगट भई फाड़कर खम्बा॥10॥   रक्षा करि प्रह्लाद बचायो॥ हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥11॥   लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं॥ श्री नारायण अंग समाहीं॥12॥   क्षीरसिन्धु में करत विलासा॥ दयासिन्धु दीजै मन आसा॥13॥   हिंगलाज में तुम्हीं भवानी॥ महिमा अमित न जात बखानी॥14॥   मातंगी अरु धूमावति माता॥ भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥15॥   श्री भैरव तारा जग तारिणी॥ छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥16॥   केहरि वाहन सोह भवानी॥ लांगुर वीर चलत अगवानी॥17॥   कर में खप्पर खड्ग विराजै॥ जाको देख काल डर भाजै॥18॥   सोहै अस्त्र और त्रिशूला॥ जाते उठत शत्रु हिय शूला॥19॥   नगरकोट में तुम्हीं विराजत॥ तिहुंलोक में डंका बाजत॥20॥   शुंभ निशुंभ दानव तुम मारे॥ रक्तबीज शंखन संहारे॥21॥   महिषासुर नृप अति अभिमानी॥ जेहि अघ भार मही अकुलानी॥22॥   रूप कराल कालिका धारा॥ सेन सहित तुम तिहि संहारा॥23॥   परी गाढ़ संतन पर जब जब॥ भई सहाय मातु तुम तब तब॥24॥   अमरपुरी अरु बासव लोका॥ तब महिमा सब रहें अशोका॥25॥   ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी॥ तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥26॥   प्रेम भक्ति से जो यश गावें॥ दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥27॥   ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई॥ जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥28॥   जोगी सुर मुनि कहत पुकारी॥ योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥29॥   शंकर आचारज तप कीनो॥ काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥30॥   निशिदिन ध्यान धरो शंकर को॥ काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥31॥   शक्ति रूप का मरम न पायो॥ शक्ति गई तब मन पछितायो॥32॥   शरणागत हुई कीर्ति बखानी॥ जय जय जय जगदम्ब भवानी॥33॥   भई प्रसन्न आदि जगदम्बा॥ दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥34॥   मोको मातु कष्ट अति घेरो॥ तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥35॥   आशा तृष्णा निपट सतावें॥ रिपू मुरख मौही डरपावे॥36॥   शत्रु नाश कीजै महारानी॥ सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥37॥   करो कृपा हे मातु दयाला॥ ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला॥38॥   जब लगि जिऊं दया फल पाऊं॥ तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं ॥39॥   दुर्गा चालीसा जो कोई गावै॥ सब सुख भोग परमपद पावै॥40॥   देवीदास शरण निज जानी॥ करहु कृपा जगदम्ब भवानी ॥0॥ || समाप्त ||

Durga Chalisa | दुर्गा चालीसा : दिव्य भक्ति पाठ

दुर्गा चालीसा हमारे हिन्दू धर्म एक महत्वपूर्ण भक्ति पाठ है जो माँ दुर्गा की आराधना और उपासना के लिए समर्पित है। Durga Chalisa 40 छंदो का एक संग्रह है, जिसमें माँ दुर्गा के विभिन्न रूपों, गुणों, और उनकी महिमा का वर्णन किया गया है। भक्तों के लिए यह एक अत्यंत प्रभावशाली साधन है। जिससे वे माँ दुर्गा की कृपा प्राप्त … अभी देखें

दुर्गा चालीसा PDF उन भक्तों के लिए विशेष रूप से उपयोगी है, जो व्यस्त जीवनशैली के कारण समय पर मंदिर नहीं जा पाते। इसमें माँ दुर्गा की महिमा का हर वह शब्द समाहित है, जो आत्मा को शांति और शक्ति प्रदान करता है।

Durga Chalisa PDF | दुर्गा चालीसा पीडीएफ : डाउनलोड करें

आजकल डिजिटल युग में दुर्गा चालीसा पीडीएफ फॉर्मेट में आसानी से उपलब्ध है, जिसे आप अपने फोन या टैबलेट पर कभी भी पढ़ सकते हैं। दुर्गा चालीसा माँ दुर्गा की स्तुति और आराधना के लिए एक अत्यंत प्रभावशाली और पवित्र स्तोत्र है। आप आसानी से Durga Chalisa PDF डाउनलोड कर सकते हैं और इसे अपने डिवाइस में सेव करके कहीं … अभी देखें

Durga Saptashati PDF दुर्गा सप्तशती पीडीएफ के माध्यम से देवी दुर्गा की पूजा और स्तुति का अभ्यास करना मानसिक शांति और भावनात्मक संतुलन का कारण बनता है। जब भक्त इस पीडीएफ का उपयोग करते हुए पूरे ध्यान और श्रद्धा से श्लोकों का उच्चारण करते हैं, तो उनका मन सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है।

Durga Saptashati PDF | दुर्गा सप्तशती पीडीएफ: अत्यंत महत्वपूर्ण ग्रंथ

दुर्गा सप्तशती पीडीएफ माँ दुर्गा की स्तुति करने के लिए एक आधुनिक और सुविधाजनक विकल्प है। दुर्गा सप्तशती, जिसे चंडी सप्तशती भी कहा जाता है, देवी दुर्गा की उपासना के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण ग्रंथ है। Durga Saptashati PDF उन भक्तों के लिए विशेष रूप से फायदेमंद है, जो यात्रा के दौरान या घर पर आराम करते हुए भक्ति करना चाहते … अभी देखें

दुर्गा कवच PDF एक अद्भुत आध्यात्मिक साधन है, जो माँ दुर्गा की अद्वितीय शक्तियों और उनके आशीर्वाद को अपने जीवन में आकर्षित करने का एक सरल तरीका प्रदान करता है।

Durga Kavach PDF | दुर्गा कवच PDF : शक्ति और सुरक्षा

दुर्गा कवच PDF के माध्यम से आप नियमित रूप से इस शक्तिशाली कवच का पाठ कर सकते हैं और जीवन में सुख-शांति और समृद्धि की प्राप्ति कर सकते हैं। इस Durga kavach PDF को पढ़ने के बाद आप समझेंगे कि कैसे देवी दुर्गा की पूजा और उनके कवच की साधना से आपके जीवन में शांति और खुशहाली आ सकती है। … अभी देखें

दुर्गा आरती को खासतौर पर माँ दुर्गा के प्रति श्रद्धा और समर्पण के भाव से गाया जाता है, और यह उन 10 पंक्तियों का संग्रह है जो माँ दुर्गा की महिमा, शक्ति और आशीर्वाद का वर्णन करती हैं।

Durga Aarti PDF | दुर्गा आरती PDF : शक्ति और भक्ति का संगम

यदि आप दुर्गा माता की पूजा और आराधना में निष्ठा रखते हैं, तो दुर्गा आरती PDF आपके धार्मिक जीवन को सरल और प्रभावशाली बना सकता है। आप इस Durga aarti pdf को अपने मोबाइल, टैबलेट या कंप्यूटर पर डाउनलोड कर सकते हैं और कभी भी, कहीं भी इसका उपयोग कर सकते हैं। यह PDF न केवल दुर्गा आरती के शब्दों … अभी देखें