दुर्गा सप्तशती कवच हिंदू धर्म के सबसे शक्तिशाली और महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक है, जो देवी दुर्गा की महिमा और उनकी शक्ति का वर्णन करता है। Durga Saptashati Kavach देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों की स्तुति करता है और साधक को हर प्रकार की नकारात्मक शक्तियों, बाधाओं, और शत्रुओं से सुरक्षा प्रदान करता है। इसमें देवी दुर्गा के 108 नाम में से 13 प्रमुख नामों और उनके शक्तिशाली प्रभाव का वर्णन किया गया है।
इस कवच का मुख्य उद्देश्य साधक के चारों ओर एक दिव्य सुरक्षा कवच बनाना है। यह कवच देवी दुर्गा की शक्ति और आशीर्वाद का आह्वान करता है, जो साधक को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक सुरक्षा प्रदान करता है। इसके अलावा आप दुर्गा रक्षा कवच का पाठ भी कर सकते है। यहां हमने आपके लिए सम्पूर्ण पाठ को नीचे उपक्लब्ध कराया है। जिसे आप durga kavach pdf में भी प्राप्त कर सकते है।
दुर्गा सप्तशती कवच
ॐ नमश्चण्डिकायै।
ॐ यद्गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम्।
यन्न कस्य चिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह॥1॥
॥मार्कण्डेय उवाच॥
॥ब्रह्मोवाच॥
अस्ति गुह्यतमं विप्रा सर्वभूतोपकारकम्।
दिव्यास्तु कवचं पुण्यं तच्छृणुष्वा महामुने॥2॥
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्॥3॥
पचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्॥4॥
नवमं सिद्धिदात्री च नव दुर्गाः प्रकीर्तिताः।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना॥5॥
अग्निना दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रणे।
विषमे दुर्गमे चैव भयार्ताः शरणं गताः॥6॥
न तेषां जायते किंचिदशुभं रणसंकटे।
नापदं तस्य पश्यामि शोकदुःखभयं न ही॥7॥
यैस्तु भक्त्या स्मृता नूनं तेषां वृद्धिः प्रजायते।
ये त्वां स्मरन्ति देवेशि रक्षसे तान्न संशयः॥8॥
प्रेतसंस्था तु चामुण्डा वाराही महिषासना।
ऐन्द्री गजसमारूढा वैष्णवी गरुडासना॥9॥
माहेश्वरी वृषारूढा कौमारी शिखिवाहना।
लक्ष्मी: पद्मासना देवी पद्महस्ता हरिप्रिया॥10॥
श्वेतरूपधारा देवी ईश्वरी वृषवाहना।
ब्राह्मी हंससमारूढा सर्वाभरणभूषिता॥ 11॥
इत्येता मातरः सर्वाः सर्वयोगसमन्विताः।
नानाभरणशोभाढया नानारत्नोपशोभिता:॥ 12॥
दृश्यन्ते रथमारूढा देव्याः क्रोधसमाकुला:।
शंखम चक्रं गदां शक्तिं हलं च मुसलायुधम्॥13॥
खेटकं तोमरं चैव परशुं पाशमेव च।
कुन्तायुधं त्रिशूलं च शार्ङ्गमायुधमुत्तमम्॥ 14॥
दैत्यानां देहनाशाय भक्तानामभयाय च।
धारयन्त्यायुद्धानीथं देवानां च हिताय वै॥ 15॥
नमस्तेऽस्तु महारौद्रे महाघोरपराक्रमे।
महाबले महोत्साहे महाभयविनाशिनि॥16॥
त्राहि मां देवि दुष्प्रेक्ष्ये शत्रूणां भयवर्धिनि।
प्राच्यां रक्षतु मामैन्द्रि आग्नेय्यामग्निदेवता॥ 17॥
दक्षिणेऽवतु वाराही नैऋत्यां खड्गधारिणी।
प्रतीच्यां वारुणी रक्षेद् वायव्यां मृगवाहिनी॥ 18॥
उदीच्यां पातु कौमारी ऐशान्यां शूलधारिणी।
ऊर्ध्वं ब्रह्माणी में रक्षेदधस्ताद् वैष्णवी तथा॥ 19॥
एवं दश दिशो रक्षेच्चामुण्डा शववाहाना।
जाया मे चाग्रतः पातु: विजया पातु पृष्ठतः॥ 20॥
अजिता वामपार्श्वे तु दक्षिणे चापराजिता।
शिखामुद्योतिनि रक्षेदुमा मूर्ध्नि व्यवस्थिता॥21॥
मालाधारी ललाटे च भ्रुवो रक्षेद् यशस्विनी।
त्रिनेत्रा च भ्रुवोर्मध्ये यमघण्टा च नासिके॥ 22॥
शङ्खिनी चक्षुषोर्मध्ये श्रोत्रयोर्द्वारवासिनी।
कपोलौ कालिका रक्षेत्कर्णमूले तु शङ्करी ॥ 23॥
नासिकायां सुगन्धा च उत्तरोष्ठे च चर्चिका।
अधरे चामृतकला जिह्वायां च सरस्वती॥ 24॥
न्तान् रक्षतु कौमारी कण्ठदेशे तु चण्डिका।
घण्टिकां चित्रघण्टा च महामाया च तालुके॥ 25॥
कामाक्षी चिबुकं रक्षेद् वाचं मे सर्वमंगला।
ग्रीवायां भद्रकाली च पृष्ठवंशे धनुर्धारी॥ 26॥
नीलग्रीवा बहिःकण्ठे नलिकां नलकूबरी।
स्कन्धयोः खड्गिनी रक्षेद् बाहू मे वज्रधारिणी॥27॥
हस्तयोर्दण्डिनी रक्षेदम्बिका चान्गुलीषु च।
नखाञ्छूलेश्वरी रक्षेत्कुक्षौ रक्षेत्कुलेश्वरी॥28॥
स्तनौ रक्षेन्महादेवी मनः शोकविनाशिनी।
हृदये ललिता देवी उदरे शूलधारिणी॥ 29॥
नाभौ च कामिनी रक्षेद् गुह्यं गुह्येश्वरी तथा।
पूतना कामिका मेढ्रं गुहे महिषवाहिनी॥30॥
कट्यां भगवतीं रक्षेज्जानूनी विन्ध्यवासिनी।
जङ्घे महाबला रक्षेत्सर्वकामप्रदायिनी॥31॥
गुल्फयोर्नारसिंही च पादपृष्ठे तु तैजसी।
पादाङ्गुलीषु श्रीरक्षेत्पादाध:स्तलवासिनी॥32॥
नखान् दंष्ट्रा कराली च केशांशचैवोर्ध्वकेशिनी।
रोमकूपेषु कौबेरी त्वचं वागीश्वरी तथा॥33॥
रक्तमज्जावसामांसान्यस्थिमेदांसि पार्वती।
अन्त्राणि कालरात्रिश्च पित्तं च मुकुटेश्वरी॥ 34 ॥
पद्मावती पद्मकोशे कफे चूडामणिस्तथा।
ज्वालामुखी नखज्वालामभेद्या सर्वसन्धिषु॥35 ॥
शुक्रं ब्रह्माणी मे रक्षेच्छायां छत्रेश्वरी तथा।
अहङ्कारं मनो बुद्धिं रक्षेन्मे धर्मधारिणी॥36॥
प्राणापानौ तथा व्यानमुदानं च समानकम्।
वज्रहस्ता च मे रक्षेत्प्राणं कल्याणशोभना॥37॥
रसे रूपे च गन्धे च शब्दे स्पर्शे च योगिनी।
सत्वं रजस्तमश्चैव रक्षेन्नारायणी सदा॥38॥
आयू रक्षतु वाराही धर्मं रक्षतु वैष्णवी।
यशः कीर्तिं च लक्ष्मीं च धनं विद्यां च चक्रिणी॥39॥
गोत्रमिन्द्राणि मे रक्षेत्पशून्मे रक्ष चण्डिके।
पुत्रान् रक्षेन्महालक्ष्मीर्भार्यां रक्षतु भैरवी॥40॥
पन्थानं सुपथा रक्षेन्मार्गं क्षेमकरी तथा।
राजद्वारे महालक्ष्मीर्विजया सर्वतः स्थिता॥ 41॥
रक्षाहीनं तु यत्स्थानं वर्जितं कवचेन तु।
तत्सर्वं रक्ष मे देवी जयन्ती पापनाशिनी॥ 42॥
रक्षाहीनं तु यत्स्थानं वर्जितं कवचेन तु।
तत्सर्वं रक्ष मे देवी जयन्ती पापनाशिनी॥43॥
पदमेकं न गच्छेतु यदिच्छेच्छुभमात्मनः।
कवचेनावृतो नित्यं यात्र यत्रैव गच्छति॥44॥
तत्र तत्रार्थलाभश्च विजयः सर्वकामिकः।
यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्चितम्।
परमैश्वर्यमतुलं प्राप्स्यते भूतले पुमान्॥
निर्भयो जायते मर्त्यः सङ्ग्रमेष्वपराजितः।
त्रैलोक्ये तु भवेत्पूज्यः कवचेनावृतः पुमान्॥45॥
इदं तु देव्याः कवचं देवानामपि दुर्लभम्।
य: पठेत्प्रयतो नित्यं त्रिसन्ध्यं श्रद्धयान्वितः॥46॥
दैवी कला भवेत्तस्य त्रैलोक्येष्वपराजितः।
जीवेद् वर्षशतं साग्रामपमृत्युविवर्जितः॥47॥
नश्यन्ति टयाधय: सर्वे लूताविस्फोटकादयः।
स्थावरं जङ्गमं चैव कृत्रिमं चापि यद्विषम्॥ 48॥
अभिचाराणि सर्वाणि मन्त्रयन्त्राणि भूतले।
भूचराः खेचराशचैव जलजाश्चोपदेशिकाः॥49॥
सहजा कुलजा माला डाकिनी शाकिनी तथा।
अन्तरिक्षचरा घोरा डाकिन्यश्च महाबला॥ 50॥
ग्रहभूतपिशाचाश्च यक्षगन्धर्वराक्षसा:।
ब्रह्मराक्षसवेतालाः कूष्माण्डा भैरवादयः॥ 51॥
नश्यन्ति दर्शनात्तस्य कवचे हृदि संस्थिते।
मानोन्नतिर्भावेद्राज्यं तेजोवृद्धिकरं परम्॥ 52॥
नश्यन्ति दर्शनात्तस्य कवचे हृदि संस्थिते।
मानोन्नतिर्भावेद्राज्यं तेजोवृद्धिकरं परम्॥ 53॥
यशसा वद्धते सोऽपी कीर्तिमण्डितभूतले।
जपेत्सप्तशतीं चणण्डीं कृत्वा तु कवचं पूरा॥ 54॥
यावद्भूमण्डलं धत्ते सशैलवनकाननम्।
तावत्तिष्ठति मेदिनयां सन्ततिः पुत्रपौत्रिकी॥
देहान्ते परमं स्थानं यात्सुरैरपि दुर्लभम्।
प्राप्नोति पुरुषो नित्यं महामायाप्रसादतः॥55॥
लभते परमं रूपं शिवेन सह मोदते ॥ॐ॥ ॥ 56॥
।। इति देव्या: कवचं सम्पूर्णम् ।
Durga Saptashati Kavach की पाठ विधि
सप्तशती कवच का पाठ विशेष रूप से शत्रुओं, रोगों, और नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा के लिए किया जाता है। इसे श्रद्धा और नियमों के साथ करने से माँ दुर्गा की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है। यहां पाठ की विस्तृत विधि दी जा रही है:
- स्नान और वस्त्र: सबसे पहले स्नान कर लें और शुद्ध वस्त्र पहनें। यह शारीरिक और मानसिक शुद्धि के लिए आवश्यक है।
- पूजा स्थल: इसके बाद पूजा स्थल को साफ और शुद्ध करें।
- स्थापन: माँ दुर्गा की मूर्ति या चित्र को एक छोटी चौकी पर लाल साफ कपड़ा बिछाकर उसके ऊपर विधिपूर्वक स्थापित करें। मूर्ति के सामने दीपक जलाएं, अगरबत्ती और धूप जलाकर माँ दुर्गा का ध्यान करें।
- आसन: पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके एक शुद्ध आसन पर बैठें। आसन कुश, ऊन या सूती हो सकता है। ध्यान रखें कि पूजा स्थल शांत हो और वातावरण में पवित्रता बनी रहे।
- संकल्प लें: किसी भी पूजा की शुरुआत में संकल्प लेना महत्वपूर्ण होता है। पाठ करने से पहले हाथ में जल, चावल और फूल लेकर माँ दुर्गा से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए संकल्प करें। यह संकल्प पाठ के उद्देश्यों को स्पष्ट करता है और साधक की श्रद्धा को दृढ़ करता है।
- गणेश वंदना और देवी पूजन: कवच पाठ से पहले भगवान गणेश का स्मरण करें और उनका आह्वान करें, ताकि आपकी पूजा निर्विघ्न हो। इसके बाद माँ दुर्गा की पूजा करें। माँ दुर्गा को फूल, अक्षत, कुमकुम, और चंदन अर्पित करें। साथ ही उन्हें फल और मिष्ठान्न का भोग लगाएं।
- कवच का पाठ: अब दुर्गा सप्तशती कवच पाठ श्रद्धा और भक्ति के साथ करें। ध्यान रखें कि मंत्रों का उच्चारण सही और स्पष्ट हो। यदि संभव हो, तो पाठ के दौरान एक माला (108 मनकों की) का उपयोग करें। इससे पाठ की गिनती और एकाग्रता बनाए रखने में मदद मिलती है।
- आरती और भोग: पाठ समाप्त होने के बाद माँ दुर्गा की आरती करें। दीपक और अगरबत्ती के साथ देवी की स्तुति करें। भोग में फल, मिष्ठान्न या दूध से बने व्यंजन अर्पित करें। आरती के बाद भोग को प्रसाद के रूप में बांटें और ग्रहण करें।
- प्रसाद वितरण: आरती के बाद प्रसाद को परिवार के सदस्यों और अन्य भक्तों में बांटें। प्रसाद का ग्रहण करना देवी की कृपा का प्रतीक माना जाता है और इससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
- समर्पण और प्रार्थना: पाठ के अंत में माँ दुर्गा से प्रार्थना करें कि वे आपकी रक्षा करें, आपको सभी कष्टों से मुक्त करें, और जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि प्रदान करें। अपनी सभी इच्छाओं और कष्टों को देवी दुर्गा के चरणों में अर्पित कर दें।
इस विधि से पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में सुरक्षा, शक्ति, और शांति का संचार होता है। माँ दुर्गा की कृपा से साधक हर प्रकार की नकारात्मकता और बाधाओं से सुरक्षित रहता है।
मंत्र जाप से होने वाले लाभ
- नकारात्मक ऊर्जा: दुर्गा सप्तशती देवी कवच का पाठ करने से साधक नकारात्मक ऊर्जा, बुरी दृष्टि, भूत-प्रेत बाधाओं और किसी भी प्रकार की अशुभ शक्तियों से सुरक्षित रहता है। यह कवच व्यक्ति के चारों ओर एक दिव्य सुरक्षा कवच बनाता है।
- शत्रुओं से रक्षा: यदि व्यक्ति को जीवन में शत्रुओं या विरोधियों का सामना करना पड़ रहा है, तो सप्तशती कवच का पाठ करने से वह शत्रुओं के षड्यंत्रों और हमलों से सुरक्षित रहता है। यह कवच उसे शक्ति और साहस प्रदान करता है।
- स्वास्थ्य में सुधार: दुर्गा माँ के सप्तशती कवच का पाठ करने से व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होते हैं। यह मंत्र रोगों को दूर करने और साधक को ऊर्जावान और स्वस्थ बनाए रखने में मदद करता है।
- आध्यात्मिक उन्नति: कवच का नियमित पाठ व्यक्ति को आध्यात्मिक रूप से उन्नति प्रदान करता है। यह साधक की आत्मा को शुद्ध करता है और उसे देवी दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है। इसके साथ ही साधक को आध्यात्मिक ज्ञान और आंतरिक शांति की प्राप्ति होती है।
- भय से मुक्ति: इस कवच का पाठ भक्त के सभी प्रकार के भय, चिंता और असुरक्षा की भावना को समाप्त करता है। यह कवच साधक को मानसिक और आत्मिक रूप से मजबूत बनाता है, जिससे वह जीवन की चुनौतियों का सामना साहस और आत्मविश्वास से कर सकता है।
- आर्थिक समृद्धि: देवी दुर्गा की कृपा से साधक के जीवन में धन, वैभव और समृद्धि का आगमन होता है। सप्तशती कवच का पाठ करने से व्यक्ति को आर्थिक कष्टों से मुक्ति मिलती है और उसका व्यापार या व्यवसाय में उन्नति होती है।
- सकारात्मक ऊर्जा: इसका पाठ करने से व्यक्ति के चारों ओर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। यह घर के वातावरण को शुद्ध और पवित्र करता है, जिससे परिवार के सभी सदस्य शांति और संतोष का अनुभव करते हैं।।
- परिवार में शांति: इसका पाठ करने से परिवार के सदस्यों के बीच सामंजस्य और प्रेम बना रहता है। यह कवच परिवार में शांति, संतोष और सकारात्मकता का वातावरण बनाए रखता है।
- जीवन में उन्नति: दुर्गा माँ के सप्तशती कवच का पाठ करने से साधक को जीवन के हर क्षेत्र में उन्नति और सफलता प्राप्त होती है। माँ दुर्गा की कृपा से व्यक्ति के सभी कार्य सफल होते हैं और उसे सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है।
इस प्रकार, इसका पाठ साधक को शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक लाभ प्रदान करता है। यह कवच साधक को हर प्रकार की विपत्तियों से बचाने वाला एक अद्भुत सुरक्षा कवच है, जो उसे देवी दुर्गा की असीम कृपा से आशीर्वादित करता है। ऐसे ही दुर्गा जी के अन्य कवच जैसे – durga raksha kavach का पाठ करके अपना जीवन सिखामय बना सकते है।
FAQ
इस पाठ को करने का मुख्य उद्देश्य क्या है ?
इसका मुख्य उद्देश्य बुरी शक्तियों और नकारात्मक ऊर्जा से छुटकारा पाना है।
इसका पाठ कौन-कौन कर सकता है ?
इसका सभी लोग कर सकते है चाहें वो बूढ़े हो, महिला हो या आदमी हो। इसे किसी भी जाती धर्म के लोग कर सकते है।
क्या इसका पाठ रोज किया जा सकता है ?
हाँ, इसका पाठ रोज किया जा सकता है लेकिन इसके लिए आपको सप्तशती पाठ का सम्पूर्ण ज्ञान होना आवश्यक है।
क्या कवच का पाठ किसी विशेष दिन करना चाहिए?
इसे किसी भी दिन किया जा सकता है, लेकिन नवरात्रि के दिनों में इसका विशेष महत्व है। इन दिनों में पाठ करने से अधिक लाभ मिलता है।
क्या इसका पाठ करने के लिए संस्कृत आना जरूरी है?
संस्कृत का ज्ञान होने पर इसका पाठ करना सरल हो सकता है, लेकिन आजकल इसके हिंदी अनुवाद भी उपलब्ध हैं, जिन्हें पढ़ा जा सकता है।

मैं मां दुर्गा की आराधना और पूजा-पाठ में गहरी रुचि रखती हूँ। मां दुर्गा से संबंधित मंत्र, आरती, चालीसा और अन्य धार्मिक सामग्री साझा करती हूँ। मेरा उद्देश्य भक्तों को सही पूजा विधि सिखाना और आध्यात्मिक मार्ग पर प्रेरित करना है।