Durga Stotra | दुर्गा स्तोत्र : माँ का दिव्य भक्ति पाठ

दुर्गा स्तोत्र, देवी दुर्गा के प्रति श्रद्धा और भक्ति का एक अनमोल समर्पण है। इस Durga stotra में देवी दुर्गा की महिमा का वर्णन अत्यंत सुंदर और प्रेरणादायक रूप में किया गया है। यह स्तोत्र न केवल भक्तों को मानसिक और आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है, बल्कि जीवन में आने वाली चुनौतियों को दूर करने के लिए एक शक्तिशाली साधन भी साबित होता है।

यह दुर्गा स्तोत्रम प्राचीन संस्कृत में लिखा गया है और इसका पाठ करने से भक्तों को शक्ति, समृद्धि और खुशहाली प्राप्त होती है। देवी दुर्गा, जो आदिशक्ति और सृजन की देवी मानी जाती हैं, उनके इस स्तोत्र का पाठ विशेषतौर पर नवरात्रि और अन्य धार्मिक अवसरों पर किया जाता है।

दुर्गा स्तोत्र

श्री गणेशाय नमः

नगरी प्रवेशले पंडुनंदन, तो देखिले दुर्गास्थान॥
धर्मराजा करी स्तवन, जगदंबेचे तेधवा ॥१॥

जय जय दुर्गे भुवनेश्वरी, यशोदागर्भसंभवकुमारी॥
इन्दिरारमणसहोदरी, नारायणी चंडीके अंबीके ॥२॥

जय जय जगदंबे भवानी, मूळप्रकृती प्रणवरुपिणी॥
ब्रह्मानंदपददायिनी, चिद्विलासिनी जगदंबे ॥३॥

जय जय धराधरकुमारी, सौभाग्यगंगे त्रिपुरसुंदरी॥
हेरंबजननी अंतरी, प्रवेशी तू अमुचिया ॥४॥

भक्तहृदयारविंद्रभ्रमरी, तुझिया कृपावलोकने निर्धारी॥
अतिमूढ तो निगमार्थ करी, काव्यरचना अद्भुत ॥५॥

तुझिया आपंगते करून्, जन्मांधासी येती नयन्॥
पांगुळ धावे पवनाहून, करी गमन त्वरेने॥६॥

जन्माधाराभ्य जो मुका, होय वाचस्पतीसम बोलका॥
तू स्वानंदसरोवरमराळिका, होसी भाविका सुप्रसन्॥७॥

ब्रम्हानंदे आदि जननी, तव कृपेची नौका करुनी॥
दुस्तर भवसिंधु लंघोनी, निवृत्ती तटा नेईजे॥८॥

जय जय आदि कुमारीके, जय जय मूळपीठनायिके॥
सकल सौभाग्यदायिके, जगदंबिके मूळप्रकृती॥९॥

जय जय भर्गप्रियभवानी, भवनाशके भक्तवरदायिनी॥
समुद्रकारके हिमनगनंदिनी, त्रिपुरसुंदरी महामाये॥१०॥

जय आनंदकासारमराळिके, पद्मनयन दुरितकानन पावके॥
त्रिविध ताप भवमोचके, सर्व व्यापके मृडानी॥११॥

शिवमानस कनक लतिके, जय चातुर्य चंपक कलिके॥
शुंभनिशुंभ दैत्यांतके, निजजनपालके अपर्णे ॥१२॥

तव मुखकमल शोभा देखोनी, इंदुबिंब गेले गळोनी॥
ब्रम्हादिके बाळे तान्ही, स्वानंदसदनी नीजवीसी ॥१३॥

जीव शीव दोन्ही बालके, अंबे तुवा नीर्मीली कौतुके॥
जीव तुझे स्वरुप नोळखे, म्हणोनी पडला आवर्ती ॥१४॥

शीव तुझे स्मरणी सावचित्त, म्हणोनी अंबे तो नित्यमुक्त॥
स्वनंदपद हातासी येत्, कृपे तुझ्या जननीये ॥१५॥

मेळवुनी पंचभूतांचा मेळ्, तुवा रचिला ब्रह्माडगोळ॥
इच्छा परतता तत्काळ, क्षणात निर्मूळ करीसी तू ॥१६॥

अनंतबालसूर्य श्रेणी, तव प्रभेमाजी गेल्या विरोनी॥
सकल सौभाग्य शुभकल्याणी, रमा रमणे वरप्रदे॥१७॥

शंबरारि रिपुवल्लभे, त्रैलोक्यनगरारंभस्तंभे॥
आदिमाये आदिप्रभे, सकळारंभे मूळप्रकृती॥१८॥

जय जय करुणामृतसरीते, निजभक्तपालके गुणभरीते॥
अनंत ब्रह्मांडपालके कृपावंते, आदिमाये अपर्णे॥१९॥

सच्चिदानंद प्रणवरुपिणी, चराचरजीव सकलव्यापिणी॥
सर्गस्थित्यंतकारिणी, भवमोचनी महामाये॥२०॥

ऐकोनी धर्मराजाचे स्तवन्, दुर्गादेवी झाली प्रसन्न॥
म्हणे तव शत्रू संहारून्, रीज्यी स्थापीन धर्मा तू ते॥२१॥

तुम्ही वास करावा येथे, प्रकटो नेदी जनाते॥
शत्रू क्षय पावती तुमचे हाते, सुख अद्भुत तुम्हा होय॥२२॥

तुवा जे केले स्तोत्रपठण्, हे जो करील पठण श्रवण॥
त्यासी सर्वदा रक्षीन्, अंतर्बाह्य निजांगे॥२३॥

॥ इति श्री दुर्गास्तोत्र समाप्त॥

यह स्तोत्र न केवल आस्थावानों के लिए, बल्कि उन सभी के लिए महत्वपूर्ण है, जो जीवन में संघर्षों और कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। अपने जीवन में माँ के आशीर्वाद और कृपा को बनाये रखने के लिए आप देवी माँ से जुड़े अन्य स्तोत्र जैसे durga ji ke 32 naam, durga stuti lyrics और durga raksha kavach का पाठ भी कर सकते है।

स्तोत्र की पाठ विधि

  1. पूजा की तैयारी: स्तोत्र का पाठ करने से पहले, एक शुद्ध और शांत स्थान का चयन करें। पूजा स्थल को स्वच्छ और सुंदर रूप से सजाएं। पूजा सामग्री जैसे फूल, दीपक, अगरबत्ती, और प्रसाद तैयार रखें।
  2. व्यक्तिगत शुद्धता: पूजा से पहले स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें। यह सुनिश्चित करें कि आपका मन और शरीर दोनों ही पवित्र हैं।
  3. स्थापना: माँ दुर्गा की तस्वीर या प्रतिमा को पूजा स्थल पर स्थापित करें। उनके सामने दीपक जलाएं और धूप या अगरबत्ती लगाएं।
  4. पाठ: स्तोत्र के लिरिक्स को ध्यानपूर्वक पढ़ें या गाएं। इस दौरान सही उच्चारण और भावनाओं के साथ पाठ करना महत्वपूर्ण है। आप माला का उपयोग करके स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं, जिससे आप मंत्रों को ठीक से पूरा कर सकें।
  5. ध्यान और समर्पण: पाठ के दौरान ध्यान केंद्रित करें और अपनी भावनाओं को माँ दुर्गा के प्रति समर्पित करें। मन को शांत रखें और पूरी श्रद्धा के साथ पाठ करें।
  6. अर्चना और अर्पण: पाठ समाप्त होने के बाद, माँ दुर्गा को नैवेद्य अर्पित करें। आरती करें और पूजा के अंत में उन्हें धन्यवाद दें।
  7. पूजा की समाप्ति: पूजा के बाद, सभी पूजा सामग्री को व्यवस्थित करें। प्रसाद का वितरण करें और पूजा से प्राप्त आशीर्वाद को स्वीकार करें।

इस प्रकार, स्तोत्र की विधि का पालन करके आप माँ दुर्गा की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।

Durga Stotra के लाभ

  1. मानसिक शांति और संतुलन: इसका नियमित पाठ करने से मानसिक शांति और संतुलन प्राप्त होता है। यह मन को शांति प्रदान करता है और चिंता व तनाव को कम करता है।
  2. आत्मविश्वास में वृद्धि: इस स्तोत्र का जाप करने से आत्मविश्वास में वृद्धि होती है। माँ दुर्गा की कृपा से व्यक्ति में साहस और धैर्य आता है, जिससे वह अपने जीवन की चुनौतियों का सामना कर सकता है।
  3. बुरे प्रभावों से सुरक्षा: इसके पाठ से नकारात्मक ऊर्जा और बुरे प्रभावों से सुरक्षा मिलती है। यह व्यक्ति को बुरे प्रभावों से बचाने में सहायक होता है और उसकी रक्षा करता है।
  4. स्वास्थ्य लाभ: इसके नियमित जाप से स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है। यह मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य दोनों के लिए फायदेमंद होता है, जिससे शरीर में ऊर्जा का संचार होता है।
  5. ऐश्वर्य और समृद्धि: माँ दुर्गा की कृपा से आर्थिक समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। यह व्यक्ति को धन और वैभव की प्राप्ति में मदद करता है और जीवन में सुख और समृद्धि लाता है।
  6. आध्यात्मिक उन्नति: इसका पाठ आध्यात्मिक उन्नति में सहायक होता है। यह व्यक्ति को आत्मज्ञान और धर्म की ओर अग्रसर करता है, जिससे उसकी आध्यात्मिक यात्रा में मदद मिलती है।
  7. समस्याओं का समाधान: इस स्तोत्र के जाप से जीवन की समस्याओं का समाधान होता है। यह व्यक्ति को कठिन समय में शक्ति और साहस प्रदान करता है और समस्याओं का प्रभाव कम करता है।
  8. शांति और सुख-शांति: इसका नियमित पाठ करने से जीवन में शांति और सुख की प्राप्ति होती है। यह व्यक्ति को मानसिक और भावनात्मक संतुलन प्रदान करता है, जिससे जीवन में सुख और शांति का अनुभव होता है।

इस प्रकार, इसका पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में कई प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं, जो उसकी व्यक्तिगत और आध्यात्मिक उन्नति में सहायक होते हैं।

FAQ

दुर्गा जी स्तोत्र क्या है?

क्या स्तोत्र का पाठ केवल मंत्रों के रूप में किया जा सकता है?

हाँ, पाठ मंत्रों के रूप में भी किया जा सकता है। इसे गाने या पढ़ने के तरीके से भी किया जा सकता है, जो व्यक्ति की सुविधा और भक्ति के अनुसार होता है।

क्या स्तोत्र का पाठ करने के लिए विशेष दिन या तिथि की आवश्यकता है?

क्या इस स्तोत्र के भजन भी होते हैं ?

क्या इसका पाठ बिना तंत्र-मंत्र के भी प्रभावी होता है?

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